बजट
में वित्त मंत्री द्वारा कर्मचारी भविष्य निधि पर लगाए जाने वाला टेक्स साधारण टैक्स
नहीं है यह कर्मचारियों के लिए जिन्होंने 30
- 35 साल
की सेवा अवधि पूरी कर ली है और निकट भविष्य में सेवानिवृति होने वाले हैं, बहुत
बड़ी सजा है. यह ज्यादातर कर्मचारियों की राय है. भविष्य निधि एक लंबी अवधि की संचय योजना है और उसका उद्देश्य
सेवा निवृत्ति के समय एक मुस्त राशि प्रदान करना है ताकि वे अपनी जिम्मेदारियों का
वहन कर सकें. वित्त सचिव और वित्त राज्य
मंत्री के बयानों और स्पष्टीकरण से ऐसा मालूम हुआ है कि संभवत: ब्याज की 60% भाग पर टैक्स लगेगा.
टैक्स का प्रावधान
करने वाले केंद्र सरकार के उच्च अधिकारियों
को शायद ये नहीं मालूम है कि सेवा मुक्त होने पर भविष्य निधि की राशि जो
कर्मचारी को मिलती है उस में आधे से अधिक हिस्सा सिर्फ ब्याज का होता है और अगर
ब्याज की 60% राशि पर भी टैक्स लगाया जाता है तो यह बहुत अधिक होगा लगभग. अगर कोई
कर्मचारी पेंशन सिस्टम में निवेश करने की बजाय टैक्स देना पसंद करें, तो अनुमान है
कि वह व्यक्ति अपने भविष्य निधि का लगभग
पांचवा (१८-२०%) हिस्सा सिर्फ टैक्स के रुप में गवां देगा . अगर यह पैसा पेंशन योजना में लगाया जाता है जो आज की परस्थितयों में बहुत अच्छा सुझाव नहीं है, क्योंकि एक तो ज्यादातर
योजनाएं भारत में बहुत आकर्षक लाभ नहीं दे रहीं हैं और दूसरे इन योजनाओं से निश्चित समय बाद जो पैसा निकालने दिया जाता है तो
उन पर आयकर लगता है।
पेंशन योजना की तुलना में अगर इस राशि
को कहीं अन्यत्र निवेश किया जाता है तो उसके लाभ काफी जादा है. स्पष्ट है कि जो कर्मचारी रिटायर होते हैं उनके पास भविष्य निधि के
फंड के अलावा बहुत सीमित विकल्प होते हैं और खास तौर से ऐसे लोग जो अपनी
जिम्मेदारियों के कारण अपने सेवाकाल में ऐसा कुछ नहीं कर पाते हैं जिसके सपने उनके दिल में होते हैं. ये लोग सेवा मुक्त
होने के बाद ऐसा क्या करेंगे ? कार खरीदेंगे..
मकान खरीदेंगे...बच्चों की शादी विवाह करेंगे... जमीन खरीदेंगे या जाकर गांव कस्बे या शहर में बसेगे. उनके लिए यह प्रस्ताव बहुत ही मुसीबत देने
वाले हैं .
वास्तव में यह टैक्स नहीं... सजा है और सरकार को इस से बचना चाहिए . इस
तरह का प्रावधान एक तो अनायास नहीं किया जा सकता और दूसरे ऐसे लोग अपने पूरे सेवाकाल
में तमाम कठनाईयां सहने के बाद अपने
भविष्य निधि को हाथ भी नहीं लगाया और भविष्य के लिए सुरक्षित रखा. मनोवैज्ञानिक रुप से भी एक अच्छा कारण सरकार के
लिए नहीं है.. वित्त मंत्रालय से जुड़े तमाम अधिकारियों ने कहा है इस योजना का उद्देश
भविष्य निधि पर टैक्स लगा कर सरकार के लिए
पैसे जुटाना नहीं है बल्कि सरकार चाहती है की लोगों को सामाजिक सुरक्षा मिले. अगर सरकार
की यह बात स्वीकार भी की जाए तो भी इसे तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता. इस तरह की
योजना अगर लागू करनी है तो नए कर्मचारियों के लिए लागू करनी चाहिए और जो कर्मचारी अगले
कुछ सालों में रिटायर होने वाले हैं उन पर यह योजना थोपी नहीं जानी चाहिए. इस तरह की योजनाएं बनाने वाले मुख्यता केंद्र
सरकार के वह बड़े अधिकारी है जिनके पास अच्छी संपत्ति है और जिन्होंने देश विदेश
घूमकर सामाजिक सुरक्षा की विभिन्न योजनाएं
देखी हैं जिनका भारत में काम करने वाले छोटे कर्मचारियों की रोजाना जिंदगी और समस्याओं
से कोई सरोकार नहीं है. ये वह अधिकारी हैं
जिनको इतनी पेंशन मिलती है जो शायद प्राइवेट और पब्लिक सेक्टर के निकायों में काम
करने वाले बड़े अधिकारियों की सैलरी से भी ज्यादा होती है. स्वाभाविक है वह शायद इस योजना को समझ नहीं पाएंगे .
अच्छा होगा यदि सेवा मुक्त होने वाले कर्मचारी अपना पैसा कैसे
इस्तेमाल करेंगे ? कहां लगाएंगे ? इसका फैसला उनके ऊपर छोड़ देना चाहिए. इस तरह की
जो सोशल सिक्योरिटी की योजनाएं लागू की जानी है वह कर्मचारियों के करियर की शुरुआत में लगाई
जानी चाहिए. कम से कम भी सेवा मुक्त होने वाले कर्मचारियों पर यह चीजे नहीं थोपी जानी चाहिए.
इस
प्रावधान को तुरंत वापस ले लेना चाहिए.
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- शिव प्रकाश मिश्रा
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