जवाहरलाल
नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र संगठन के पदाधिकारी कन्हैया कुमार को कल दिल्ली
हाईकोर्ट के आदेश पर रिहा कर दिया गया. हालाकि दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश में ऐसी बहुत सारी शर्तें हैं जिनसे JNU में जो कुछ हुआ उसके प्रति
अच्छा सन्देश नहीं है. ये सर्व विदित है कि कैसे JNU को राष्ट्र विरोधी तत्वो का अड्डा बनाया गया और
कैसे वहां पर राष्ट्र विरोधी गतिविधियां चलाई जाती है और कैसे वहां पर देश के बहुत संख्यक समुदाय के प्रति कुत्सित भावनाएं
निकाली जाती हैं . इन सब के पीछे एक सुनियोजित अभियान है और इस अभियान को
राष्ट्रीय स्तर और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर
काफी धन उपलब्ध कराया जाता है. अंतरिम जमानत आदेश की शर्तों में कन्हैया कुमार को
किसी भी देश विरोधी अभियान में शामिल ना होना, किसी भी ऐसी चीजों से अलग रहना जिससे देश की छवि प्रभावित होती है, देश की
अखंडता को धक्का पहुंचता है. लेकिन इस जमानत को एक बहुत बड़ी विजय के रूप में
प्रचारित और प्रसारित किया जा रहा है .
रिहाई
के बाद कन्हैया कुमार के लिए JNU में उसी
रात लगभग 11:00 बजे एक सभा का आयोजन किया गया
जिसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लगभग हर चैनेल ने सीधे प्रसारित किया. जिन लोगों ने ये
सीधा प्रसारण देखा और कन्हैया कुमार
द्वारा संबोधन और उस में कही गई बातों का सुना, उन लोगों को इस बात का एहसास जरूर हुआ
होगा कि उसके बोलने की स्टाइल और डायलोग बहुत ही अच्छे हैं, पूरा भाषण किसी मंझे हुए राजनेता से कम नहीं था . भाषण को बहुत ही
सावधानी से लिखा गया था और मुख्य निशाना
केंद्र व् सरकार नरेंद्र मोदी थे . यह कहना भी अप्रासंगिक नहीं होगा कि पूरे भाषण में कन्हैया कुमार ने कई राजनीतिक
दलों का और कई नेताओं का नाम लेकर उनके
प्रति आभार व्यक्त किया और प्रशंसा की जिन्होंने उनका साथ दिया. ये दर्शाता है कि यह पटकथा कहीं और लिखी गयी . कन्हैया
कुमार के अतीत को अगर देखा जाए तो ऐसा नहीं लगता कि वह किसी मंझे हुए नेता की तरह सधा हुआ भाषण देने की कला जानते हैं. और तो और, भाषण के अंत में उसी तरह की नारेबाजी की गई.... आजादी.... आजादी जैसे कि उमर
खालिद ने हिंदुस्तान से आजादी की बात की थी. शायद इसका उद्देश पूरे देश को संदेश
देना होगा की उस दिन अफजल गुरु की बर्षी पर भी इसी तरह के भाषण दिए गए थे और जो भी वीडियो पुलिस के समक्ष प्रस्तुत किये
गए या मीडिया में दिखाए गए गए वह सही नहीं
थे. यही काफी कुछ नियोजित लगता है.
कन्हैया
कुमार की जेल के दौरान उनके परिवारी जनो द्वारा
जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के छात्रों को
संबोधित करना और कन्हैया ने जो भी किया उस पर गर्व किया . भाषण में तमाम लोगों पर नाम
कटाक्ष किया गया और एलान किया गया कि आजादी की जंग चलती रहेगी. स्वाभाविक है आजादी
की जंग का मतलब मोदी सरकार से आज़ादी. ये शुद्ध राजनीति है और इसलिए जो पूरा
ड्रामा शुरु हुआ और उसे जो मोड़ दिया गया वह
आगामी चुनाओं को ध्यान में रखते हुए किया गया
है.
भारत
में पिछले कुछ महीनों में हुए आन्दोलनों
पर अगर सिलसिले बार गौर किया जाए तो आप पाएंगे कितना
कुछ बिलकुल इवेंट मैनेजमेंट की तरह किया जा रहा है . फिल्म एवं टेलीविजन इंस्टिट्यूट
ऑफ इंडिया पुणे में छात्रों का प्रदर्शन होता है, कथित बौद्धिक लेखक वर्ग असहिष्णुता के नाम पर अपना
पुरस्कार वापस करता है और तब तक चलता रहता
है जब तक बिहार के चुनाव संपन्न नहीं हो जाते, इसी बीच में रोहित वेमिला का मामला आता है, बीफ का
मामला गर्माता है . इसके बाद मैं जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय का नंबर आता है और
अफजल गुरु के फांसी के दिन को शहीद दिवस
के रूप में मनाया जाता है, उसकी प्रशंसा की जाती है. अफजल गुरु के पक्ष में स्वयं उमर खालिद और एक विशेष समुदाय संबंध रखने वाले कई
नेता मीडिया बहस में अफजल गुरु और कई ऐसे लोगों के पक्ष में बयान देते हैं.
इस
बात में किसी को भी कोई संदेह नहीं कि जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में राष्ट्र
विरोधी नारे लगाए गए . अखिलेश गुरु के समर्थन में नारे लगाए गए और बहुत से ऐसे
नारे लगाए गए कि कोई भी राष्ट्र भक्त और राष्ट्र हित में सोचने वाला व्यक्ति
बर्दाश्त नहीं कर सकता है. जब इस मामले को मीडिया में उछाल दिया गया तो तथाकथित
बौद्धिक वर्ग सामने आ गया इसमें राजनैतिक दल भी थे और कई गणमान्य व्यक्ति भी. पूरे
मामले को ऐसा मोड़ दे दिया गया जैसे की राष्ट्र और राष्ट्र विरोध की भावना ना होकर
केंद्र सरकार और छात्र के बीच का मामला है. कन्हैया कुमार को जेल ले जाते समय धक्का मुक्की को उन वकीलों के लिए ऐसा पेश किया
गया जैसे उनका कृत्य राष्ट्रद्रोह से भी भयंकर है. इस बीच उमर खालिद और उसके अन्य
साथी भूमिगत हो जाते हैं और जब पूरा माहौल
उन के पक्ष में बन जाता है, कई राष्ट्रीय नेता और अंतरराष्ट्रीय हस्तियां उन के पक्ष में खड़े हो जाते हैं तो अचानक प्रगट हो जाते हैं. दिल्ली सरकार जिसके
पास पुलिस का कंट्रोल नहीं है, कानून
व्यवस्था का भी दायित्व नहीं है, मजिस्ट्रेट जांच का आदेश देती है और उस जांच में
यह पाया जाता है कि जो वीडियो पुलिस को दिए गए और जिन वीडियो के आधार पर भी
कार्रवाई की जा रही उनके साथ छेड़छाड़ की गयी थी. इन सबके बीच कई राजनीतिक दलों के
नेता कैम्पस जाते हैं और सभी छात्रों के समर्थन में
खड़े हो जाते हैं . कई राज्यों के मुख्यमंत्री अपने-अपने राज्यों से बयान देते हैं.
अब कन्हैया बामपंथियो, कांग्रेस और आप के लिए चुनाव प्रचार करेंगे ...
विषय
बहुत गंभीर है और इसको उतनी ही गंभीरता से हल करने की जरूरत है. देशद्रोहियों के
साथ, देश के विरुद्ध बात करने वालों के
साथ, देशद्रोहियों का साथ देने वालों के साथ, बहुत ही सख्ती से पेश आने की जरूरत
है लेकिन देश के पालनहार कर्णधार राजनैतिक स्वार्थ बस .....देश हितो के विरुद्ध कार्य कर रहे
हैं . राजनीतिक स्वार्थ आज देश तो बहुत बड़ा हो गया है. पूरी दुनियां देख रही है .. भारत कैसा
महान है ? और कितना महान है ?
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शिव प्रकाश मिश्रा