Friday, 20 November 2015

बिहार में बहार


श्री नीतीश कुमार द्वारा मुख्यमंत्री पद की शपथ  ग्रहण करने के साथ बिहार में बहार आ गई. जेडीयू द्वारा बीजेपी  से संबद्ध संबंध विच्छेद करने के बाद बिहार में बहुत ही असमंजस पैदा हो गया था और लगातार अनिश्चय  की स्थिति बनी हुयी थी. चुनाव प्रचार से लेकर चुनाव पूर्व सर्वेक्षण, मतदान से लेकर इक्सिट पोल और  अंतिम मतगणना तक लगातार सस्पेंस  बरकरार रहा. जो  चुनाव परिणाम सामने हैं,  उनमे एक  संदेश है जो आसानी से नहीं समझा जा सकता है . ऊपर से देखा जाए तो यह महा गठबंधन की महाविजय है और बीजेपी की जबरदस्त हार है. पर चुनाव परिणाम की विस्तृत विवेचना से पता चलता है की बिहार में सिर्फ और सिर्फ लालू प्रसाद यादव की ही जीत हुई है और बाकी सभी हार गए. चाहे वह मुख्यमंत्री बनने वाले नितीश कुमार हों, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों  या फिर अध्यादेश फाड़ने  वाले राहुल गांधी हो.

पूर्व विधानसभा में नितीश कुमार के 112 विधायक थे और बीजेपी  के 94 , ( दोनों पार्टियों के गठबंधन के पास कुल २०६ विधायक थे, आज महा गठबंधन के पास १७८ सीट हैं ), आरजेडी के पास २२ और कांग्रेस के पास ४ विधायक थे . नयी विधान सभा में  तमाम सुशासन और अच्छी छवि के बावजूद नितीश की जेडीयू को ७१ सीट  प्राप्त हुयी जो पहले से ४१ कम हैं. बीजेपी को ५३ सीट मिली हैं जो भी  पहले से ४१ कम हैं. अत: दोनों ही पराजित हुए हैं. आरजेडी को ८० सीटें  और वह विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी (पहले से ५८ ज्यादा) और नीतीश कुमार की पार्टी विधानसभा में नंबर 2 की पार्टी होगी और भारतीय जनता पार्टी नंबर 3 पर चली गई है ( दोनों ही एक एक पायदान नीचे ). मगर किसी को सबसे अधिक नुकसान हुआ तो वह हैं नितीश कुमार है जो पहले प्रधान मंत्री मैटीरियल थे अब मुख्यमंत्री मैटीरियल बने रहने के लिए लालू प्रसाद यादव की कृपा पर निर्भर हैं. सही मायने में बिना लालू प्रसाद यादव के, वह पत्ता भी नहीं हिला सकते.

 आज के शपथ ग्रहण समारोह से जिसमें लालू के बेटे को मुख्यमंत्री बनाया गया है, इस साबित हो गया है नीतीश कुमार की आगे की राह बहुत आसान नहीं है. तकनीकी तौर पर देखा जाए तो विधानसभा की सबसे बड़ी पार्टी आरजेडी  को मुख्यमंत्री पद  मिलना चाहिए था लेकिन लालू प्रसाद यादव ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद देकर उन पर बहुत बड़ा एहसान किया है. नीतीश कुमार इन अहसानों के तले दबे हुए काम करेंगे . उनके पास इतनी शक्ति और सामर्थ्य भी नहीं होगी कि  अगर कुछ गलत हो रहा है तो उसे रोक सके और सुशासन कायम कर सकें.  इस बीच  लालू के दोनों बेटों को ट्रेनिंग मिलेगी और सत्ता में आगे बढ़ने का हौसला मिलेगा और यह उपमुख्यमंत्री अगले 1 या 2 साल बाद मुख्यमंत्री की दावेदारी कर सकता है  और हो भी सकता है. लालू यादव के पास 80 कांग्रेस के पास 27 मिलाकर बिना नितीश के सरकार बनाने के लिए सोलह विधायकों की जरूरत है और यह काम बड़े आराम से लालू यादव कर सकते हैं . ऐसा भी हो सकता है कि भारत के अगले  आम चुनाव 2019 में नितीश को विपक्ष के प्रधानमंत्री के  चेहरे के रुप में प्रस्तुत किया जाय . इस तरह से लालू यादव का काम आसान हो जाएगा. 

कहते है कि लोकतंत्र में जनता को वही सरकार मिलती है जिसकी वह हकदार होती है, शायद बिहार में यही हुआ है.एक और नयी चीज बिहार चुनाव परिणामों से निकल कर आयी है कि तमाम राजनैतिक दल और  तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल जितना महागठबंधन की जीत से खुश नहीं हैं उतने भाजपा की हार से खुश हैं।  सबसे महत्त्वपूर्ण ऐसे बहुत  लोग भाजपा में भी हैं।   

                            
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