तस्लीमा नसरीन ने अभी हाल में दिए अपने
इंटरव्यू कहा कि हिंदुस्तान में यह एक
फैशन हो गया है जो लोग धर्म निरपेक्ष होते है (या कहलाते हैं ) वह हिंदुओं के
विरुद्ध होते है. उनका इंटरव्यू साहित्यकारों
द्वारा वापस किए जा रहे साहित्य अकादमी पुरस्कारों के परिपेक्ष में था. उन्होंने कहा
जब पश्चिम बंगाल में उनकी किताब पर प्रतिबन्ध लगाया गया और राज्य से बाहर कर दिया गया तो उन्हें दिल्ली आकर रहना पड़ा था. कट्टर
पंथियों के दबाव में उन्हें हिंदुस्तान भी
छोड़ना पड़ा, उस समय कम से कम साहित्यकारों ने तो कोई आवाज नहीं उठाई.
अब तक लगभग 24 साहित्यकार अपने
पुरस्कार वापस कर चुके है . और तो और मोहान की पतली पगडंडी से चल कर हजरतगंज पहुँचने
वाले अपने प्रिय मुनव्वर राना भी उसी श्रेणी में गिर चुके है. और न जाने कितने लोग
गिरेंगे ? और कितना गिरेंगे ? इन्हे नहीं मालूम जो ये काम कर रहे है, उससे विदेशों
में भारत की छवि कितनी खराब हो रही है ? पुरुस्कार
वापसी का सिलसिला कुलवर्गी जैसे लेखक की ह्त्या से शुरू होकर अख़लाक़ की हत्या से
जुड़ गया. अब तो पाकिस्तान ने भी कहना शुरु कर दिया है कि हिंदुस्तान में मुसलमानो
के साथ बहुत अत्याचार किया जा रहा है. इसका जबाब तो हिन्दुस्तान का मुसलमान ही दे
सकता है और उन्हें पाक को कड़ा सन्देश देना चाहिए.
पकिस्तान और उनके समर्थको की जानकारी
के लिए ये बताना उचित होगा पाकिस्तान में हिंदू अल्पसंख्यक हैं जिनकी जनसंख्या
1947 में 17 प्रतिशत से कुछ अधिक थी, जो
1998 में घटकर एक दशमलव छह प्रतिशत रह गई है और आज की तारीख में यह लगभग एक
प्रतिशत से भी कम है. कम से कम पकिस्तान जैसे देश को अल्पसंख्यको की दशा पर बोलने का कोई हक
नहीं है. क्या किसी धर्मनिरपेक्ष साहित्यकार ने इस बारे कभी पुरुस्कार वापस करने
के बारे सोचा ? जब कश्मीर में भयानक नरसंघार हुआ था और कश्मीरी पंडितो को घाटी से
बाहर कर दिया गया, जब गोधरा कांड हुआ, जब मुंबई बम कांड हुआ, जब दंगों में हजारों
सिखों की हत्या हुयी, तब कोई भी साहित्यकार पुरस्कार वापस करने क्यों नहीं आया ?
केंद्र में नई सरकार बनने के बाद पिछले डेढ़ साल
में ऐसा क्या हो गया जिससे इन साहित्यकारों ने इतना हाय तौबा मचा रखा है. क्या साहित्य अकादमी के पास राज्य
सरकारों से भी अधिक अधिकार है कि सम्पूर्ण भारत में कानून व्यवस्था सम्भाल ले. कानून
व्यबस्था राज्य सरकार का विषय है. क्या राज्य सरकारों को सख्त कारवाही से कोई
रोकता है ?
एक टी वी शो
में सुब्रमंयम स्वामी ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय
स्तर पर एक एजेंसी काम कर रही है जो भारत
में इस तरह की घटनाओं को अंजाम देकर माहौल को खराब करने की कोशिश कर रही है. इसका
मकसद न सिर्फ केंद्र में मोदी सरकार को परेशान करना अपितु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि खराब करना भी
है . श्री स्वामी ख्याति प्राप्त व्यक्ति है उनके कहने में अगर कुछ भी सच्चाई है
तो सरकार को चाहिए कि पूरी घटना की जाँच कराई जाए और अगर कोई इस तरह की कोई एजेंसी काम
कर रही है तो उसे बेनकाब किया जाए. ऐसा लगता है कि सुब्रमणयम स्वामी की बात में
काफी सच्चाई है. पंजाब में हो रहे उन्माद के पीछे किसी सुनियोजित अभियान का पता
चला है . अभी पश्चिम बंगाल मे हुए नन रेप
कांड, दिल्ली और मुंबई में चर्चों पर हुए
हमले द्वारा माहौल ख़राब करने के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया गया. लेकिन
बड़े ताज्जुब की बात यह है केंद्र सरकार ने भी इन घटनाओं पर आ बहुत ज्यादा संज्ञान
नहीं लिया और ना ही इन घटनाओं की तह तक जाने की कोशिश की गई ताकि उस अभियान की पोल
खोली जा सके और उसके पीछे छिपे व्यक्ति की पहचान की जा सके. अब समय आ गया है कि केंद्र सरकार
को चाहिए भारत में इस तरह चलने वाले किसी
भी अभियान को रोका जाना चाहिए ताकि भारत के अच्छे कार्यो को दुनिया को बताया जा
सके और भारत में तीव्र गति से विकास हो
सके . हिदुस्तान में रहने वाला हर व्यक्ति पहले हिन्दुस्तानी है चाहे वह किसी भी
धर्म का क्यों न हो और हर हिन्दुस्तानी का फर्ज है कि वह सांप्रदायिक सौहार्द और
भाई चारा बनाये रखे .
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