Wednesday, 2 October 2013

कानून, न्याय और व्यबस्था


चारा घोटाले के सभी आरोपियों पर आरोप साबित होने के बाद जेल भेजा जाना जारी है . न्यायालय द्वारा दोषसिद्ध राजनैतिक लोगो को बचने के लिए जो अध्यादेश राष्ट्रपति के पास भेजा गया था उस पर विपक्षी दलों के विरोध और राष्ट्रपति की अनिच्छा के कारण हस्ताक्षर तो नहीं हुए बल्कि राहुल गांधी के विरोध के कारण सरकार इसे वापस लेने जा रही है. इसके लिए राहुल गांधी की तारीफ की जानी चाहिए और ये स्थिति निश्चित रूप से इन राजनेताओं की संसद की सदस्यता ख़त्म करेगी और इन्हें अगले कुछ सालों तक चुनाव में भाग लेने से भी  रोकेगी.  

१७ साल पहले हुए चारा घोटाले की राशि लगभग ४० करोड़ रुपये थी. तमाम बाधाओं को पार करते हुए सीबीआई की विशेष अदालत ने अपने फैसले में इन तमाम ४० से अधिक बड़े नेताओं और पूर्व अधिकारियो को सजा सुनायी जिसे सीबीआई अपनी बहुत बड़ी सफलता मान रही है. अभी इस फैसले को हाई कोर्ट और जरूरत पड़ने पर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जायेगी और उसमे भी काफी समय लगेगा . यानी निचली अदालत के फैसले में १७ साल का समय.... जो किसी भी दृष्टि से  कम नहीं कहा जा सकता और ये समय तब लगा जब ये हाई प्रोफाइल केस था, मीडिया की पैनी निगाह थी और राजनैतिक दबाव भी था और सबसे बड़ी बात कि सीबीआई की ये जाँच  हाई कोर्ट की निगरानी में हुई. वर्ना या तो जाँच ही नहीं हुयी होती या फिर जाँच का नतीजा कुछ और होता. सोचिये अगर ये मुकदमा आम आदमी का होता तो अभी भी तारीख पर तारीख मिल रही होती . ये है हमारे देश की न्याय व्यवस्था. इन १७ सालों में देश और प्रदेशों और लोगों की जिन्दगियों में बहुत कुछ बदल गया है . अविभाजित बिहार आज दो राज्यों बिहार और झारखण्ड में बदल गया है . बच्चे बड़े हो गये हैं और बड़े बूढ़े हो गये हैं और शायद कुछ बूढ़े अब इस दुनियां में नहीं रहे. जिनके (जानवरों) लिए इन रुपयों से चारे की व्यबस्था होनी थी पता नहीं उनका क्या हुआ ? घोटाले की राशि मुद्रा स्फीति की दर या बैंक की  व्याज दर के हिसाब से लगभग ५०० करोड़ रुपये आज की तारीख में होती हैं. ये छोटी राशि नहीं है और इस की वसूली कैसे होगी ? कहाँ से होगी ? शायद नहीं हो पायेगी.  अगर हो भी जाये तो कल्पना करिए कि किसी व्यक्ति ने कोई गबन किया और मुकदमेबाजी शुरू हो गयी और १७ साल बाद यदि पैसा वापस भी करना पड़ता है तो ये तो बहुत फायदे का सौदा हुआ जिसकी तुलना में सजा क्या महत्व रखती है ?

एक और बरिष्ठ नेता जी को अदालत ने मेडिकल प्रवेश में घोटाले के कारण ४ साल की सजा सुनायी है और उन्हें जेल भेज दिया गया है. ये ५ रुपये में भरपेट खाना खाने वाले राजनेता है जो संभवता अब जेल में सामान्य कैदियों को मिलने वाले २५-३० रुपये के खाने पर गुजारा करने के बजाय वीआईपी जेल में रहेंगे. इस मुकाम तक पहुँचने में २३ साल का समय लगा. संभवता: इस प्रकरण में सर्वोच्च न्यायलय के निर्देशानुशार अपनी संसद सदस्यता गंवाने वाले वह पहले व्यक्ति होंगे .    
 
कानून के हाँथ बहुत लम्बे होते है, ऐसा कहा जाता है पर बड़ी बड़ी हस्तियों तक पहुँचने में ये हाथ इतना विलम्ब क्यों करते है ? कानून को तो इस ढंग से अपना काम करना चाहिए कि भारत के इन भाग्य विधाताओं के मामले में त्वरित फैसला हो जो न सिर्फ कानून के साथ खिलवाड़ करने वालों के लिए उदहारण बने बल्कि देश में कानून का शासन स्थापित करने में मददगार हो.ये कैसा न्याय है? इतने वर्षो तक न जाने कितने बार इन्होने चुनाव लड़ा ? न जाने कितने बार माननीय रहे ? न जाने कितने पदों पर रहे ? न जाने कितने बार कितने लोगो को नैतिकता और कुशल प्रशासन का पाठ पढाया ? और न जाने क्या क्या किया ? लेकिन संतोष की बात है कि कानून ने अपना काम तो किया .

आज जरूरत इस बात की है कि निचली अदालतों से लेकर सर्वोच्च न्यायलय तक न्यायाधीशों के संख्या में जितना संभव हो सके बढ़ोत्तरी की जाय और हर मुक़दमे की समयाविध निश्चित की जाय. छोटे छोटे मुकदमों को स्थानीय / पंचायत स्तर पर निपटारे की व्यबस्था की जाये. झूठे मुक़दमे दायर करने के विरुद्ध सख्त कानून बनाये जाय . महत्वपूर्ण मुकदमों की सुनवाई के लिए फ़ास्ट ट्रेक व्यबस्था लागू की जाय . सबसे बड़ी बात ...कानून और प्रक्रिया को समय की जरूरत के हिसाब से सरलीकृत किया जाय ताकि इसमें जहाँ तक संभव हो व्यक्ति अपना पक्ष खुद प्रस्तुत कर सके और समय की भी बचत हो सके. एक बात और ..सर्वोच्च न्यायलय को और शक्तिमान बनाया जाय ताकि कुछ बिशिष्ट लोग आम आदमी का न्याय न  हड़प सके और न्याय होता रहे , न्याय की आश बनी रहे.

 
********************************

      - शिव प्रकाश मिश्र

*********************************

No comments:

Post a Comment