ये
देश कहाँ जा रहा है ? वर्तमान राजनीति इस देश को कितना शर्मिंदा करेगी ? आज
के दिन कोई इसकी भविष्यवाणी नहीं कर सकता ।
इस देश के लोकतन्त्र के मंदिर कहे जाने वाले संसद के लगभग 65 सदस्यों ने अमेरिकी राष्ट्रपति
बराक ओबामा को पत्र लिख कर निवेदन किया है कि गुजरात के मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी
को अमेरिकी बीजा न दिया जाय । इस चौंकाने वाली कार्यवाही ने समूचे देश को बहुत शर्मिंदा
किया है । क्या घरेलू राजनीति का विरोधाभास या राजनैतिक विरोध अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर
पर लड़ा जाएगा और दूसरे देशों से अपने राजनैतिक विरोधियों को सबक सिखाने के लिए कहा
जाएगा ? क्या भारतीय राजनीति का चेहरा इतना विकृत हो चुका है
कि राजनैतिक हिसाब चुकाने के लिए के लिए देश के स्वाभिमान और सम्मान को भी दांव पर
लगा दिया जाएगा ?
अमेरिका का वीज़ा किसी भारतीय के लिए क्या
मायने रखता है ? क्या अमेरिका स्वर्ग है जहां जाने के लिए हर कोई लालायित होगा ? या जहां जाए वगैर किसी को मोक्ष नहीं मिल सकता ? या
उसका अस्तित्व ही नही होगा ? अपनी पहचान नही होगी ? क्या अमेरिका कोई अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय है कि जिसे वह वीज़ा नहीं देगा उसे
अपराधी माना जाएगा ?
जहां तक नरेंद्र मोदी का सवाल है वह संवैधानिक
विधि व्यवस्था के अंतर्गत जनता द्वारा चुने गए मुख्यमंत्री है, जो एक संवैधानिक
पद है, और उन्हे यदि कोई देश वीज़ा से इंकार करता है तो ये भारत
की संप्रभुता का अपमान है । यह संतोष की बात है कि भारत सरकार ने अमरीकी प्रशासन से
इस पर अपना विरोध दर्ज कराया है । पर संसद के दोनों सदनो के लगभग 65 सदस्यों ने अपनी
इस कार्यवाही से ये साबित कर दिया है कि उन्हे भारत के संविधान की, जिसके प्रति उन्होने निष्ठा की शपथ ली है, समुचित जानकारी
नहीं है या श्रद्धा नहीं है । ये तो अच्छा हुआ कि श्री सीताराम यचूरी ने साफ कर दिया
कि उन्होने किसी ऐसे पत्र पर हस्ताक्षर नही किए है और उनके हस्ताक्षर फर्जी है । निश्चित
तौर पर यहाँ कानून को अपनी काम करना चाहिए ।
किसी भी स्वाभिमानी व्यक्ति
को अमेरिकी वीज़ा के लिए इन परस्थितयों मे प्रयास भी नहीं करना चाहिए । इसलिए नरेंद्र
मोदी को चाहिए कि वह स्वयं घोषणा करे कि अमेरिकी वीज़ा की उन्हे कोई दरकार नहीं है ।
उनके दल के अध्यक्ष को भी अमेरिका यात्रा के दौरान इस तरह की मांग से बचना चाहिए था।
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